Aacharya Aarjav Sagar ji Maharaj (AARJAV VANI) आर्जव वाणी

परम् पूज्य आचार्य श्री १০८

आर्जवसागर जी महाराज

जैन धर्म के अनुकरणीय संत, आचार्य आर्जवसागर जी महाराज को हाल ही में एक अत्यंत गौरवपूर्ण उपलब्धि प्राप्त हुई है। उन्हें  USA, UN, ASIAN बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड द्वारा उनके आध्यात्मिक साहित्यिक योगदान, समाजसेवा, और अहिंसा के प्रचार-प्रसार के लिए अलंकरण (सम्मान) प्रदान किया गया है। यह सम्मान न केवल जैन समाज के लिए, बल्कि समस्त भारतवर्ष के लिए गर्व का विषय है।
आचार्य आर्जवसागर जी का जीवन तप,त्याग, तपस्या, आत्मानुशासन और करुणा  एवं चारित्र का प्रतीक रहा है। वे वर्षों से समाज को धर्म, नैतिकता और संयम का मार्ग दिखा रहे हैं। उनके अहिंसा एवं शिक्षा पर आधारित प्रवचन जन-जन को जीवन की सच्ची दिशा प्रदान करते हैं। वे विशेष रूप से युवाओं को नैतिक जीवन, नशामुक्ति और शाकाहार की ओर प्रेरित करते  हैं।

USA, UN, ASIAN बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड” एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संगठन हैं ।जो विभिन्न क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान देने वाले व्यक्तित्वों को सम्मानित करते है। आचार्यश्री को यह सम्मान उनके द्वारा रिकॉर्ड स्तर पर रचित अनेक कृतियों जैसे मुरज बंध, समयोदय काव्य, अंतादि शतक आदि एवं उनके सान्निध्य में किए गए आध्यात्मिक आयोजनों, समाज सुधार अभियानों और लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली जीवन शैली के लिए प्रदान किया गया है।सभी को अत्यंत हर्ष का विषय है कि आचार्य आर्जवसागर को  USA, UN, ASIAN, LONDON बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड द्वारा  अलंकृत किया गया है। एवं उनके अद्वितीय साहित्यिक आदि योगदान को मानद की उपाधि (डॉक्टर्ड) के योग्य माना।
यह पुरस्कार सिद्ध करता है कि भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की गूंज अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह विश्वमंच पर भी अपनी विशेष छाप छोड़ रही है।

इस सम्मान के माध्यम से आचार्य आर्जवसागर जी ने यह सिद्ध कर दिया कि धर्म केवल पूजा या साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन को सन्मार्ग की ओर ले जाने वाला व्यवहारिक मार्ग भी है। उनका जीवन आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है कि सेवा, संयम और साधना से व्यक्ति न केवल आत्मिक उन्नति कर सकता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। 
यह सम्मान केवल आचार्यश्री का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जैन समाज का सम्मान है। यह हमें यह भी स्मरण कराता है कि यदि हम अपने सिद्धांतों पर अडिग रहें और सेवा को अपना धर्म मानें, तो संपूर्ण विश्व हमारे कार्यों को पहचान देगा। 
हम एवं सम्पूर्ण भारत वर्ष आचार्य आर्जवसागर जी को इस यूनिक सम्मान के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ देते हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे दीर्घायु हों और ऐसे ही समाज और धर्म की सेवा करते रहें।