Aacharya Aarjav Sagar ji Maharaj (AARJAV VANI) आर्जव वाणी

परम् पूज्य आचार्य श्री १০८

आर्जवसागर जी महाराज

सात्विक जीवन अपने आप में महत्वपूर्ण जीवन माना जाता है। चक्रवर्ती भी आष्टाह्निका पर्व में सात्विकता से रहते हैं वैसे भी सम्यग्दृष्टि जीव का जीवन सात्विक ही होता है। जीवन में धन भी कमाओ तो सात्विक ही, क्योंकि सात्विक धन ही सही धन माना जाता है। व्यापार भी सात्विक ही होना चाहिए जिसमें ज्यादा हिंसा न हो। जिसमें संकल्पी हिंसा का दोष लगता हो या जिस धंधे में संकल्पी हिंसा होती हो ऐसे धंधे का, धन का त्याग कर देना चाहिए, कभी भी उसे अपनाना नहीं चाहिए। सात्विक धन से ही जीवन में सात्विक संस्कार आ सकते हैं क्योंकि जो धन जिस प्रक्रिया से आता है वह उसी प्रक्रिया से खर्च भी हो जाता है। इसलिए धन कमाने से पहले उसके सदुपयोग की बात सोच लेना चाहिए। धनवान बनने से पहले ये सोचिये कि आखिर धन क्या है ? परिग्रह पाप है तो क्या आप पापवान/पापी होना/बनना चाहेंगे? नहीं, तो सुनिये :-

आचार्य गुरुदेव ने आत्मानुशासन ग्रंथ की 29 वीं गाथा (बीना बारहा चातुर्मास में) का व्याख्यान करते हुए कहा – जो आप लोग अपने धन को बैंक में जमा करते हो, वह धन बैंक से मांस निर्यात/उत्पादन और नशीले पदार्थों के उत्पादन के लिए जा रहा है, इसके बारे में आप लोग कुछ विचार कीजिए। वरना पाप में लगा हुआ धन अनर्थ का कारण बनता है इसमें आप लोग भी दोषी माने जायेंगे। यदि इस दोष से बचना चाहते हो और सात्विक धन का सात्विक कार्य में उपयोग करना चाहते हो तो अपनी समाज की एक बैंक खोलिये और इसका नियम होना चाहिए कि इसका पैसा मात्र सात्विक कार्यों में ही उपयोग किया जावेगा। उस बैंक का नाम आप अहिंसा बैंक रख सकते हैं। इसके माध्यम से धन के दुरुपयोग से बच सकते हो।